Wednesday, October 24, 2018

ग़ज़ल - 81

वो है एक बदगुमानी, और क्या है
मेरे ख़्वाबों से छेड़खानी और क्या है

सुबह दफ़्तर, शाम को घर
रोज़मर्रा की परेशानी और क्या है

सारी आरज़ू-ओ-आबरू-ओ-जुस्तजू लूटकर
पूछते हैं वो जानी, और क्या है

मुझको छूकर अक्सर जल जाया करते हैं
राख में अंगारे की निशानी और क्या है

सच देखती है सच बोल नहीं सकती
इक कलम की बेज़ुबानी और क्या है

बे-वक़्त बोलना, बे-वक़्त चुप रहना
ज़िन्दगी की पशीमानी और क्या है

'जौन' से आख़िरी बार मिली वो कहकर
इश्क़ जावेदानी है, और क्या है

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