Sunday, October 28, 2018

अकेले शेर - 24

अमन का इक पैग़ाम लिखकर मज़हब पर इल्ज़ाम लिखा
ख़ुदा लिखा पाली में हमने उर्दू में है राम लिखा

सत्य है अल्लाह सत्य है ईश्वर सत्य है जिसकी खोज में तुम
मंज़िल को बस सत्य लिखा है रहगुज़र को बदनाम लिखा

Wednesday, October 24, 2018

ग़ज़ल - 81

वो है एक बदगुमानी, और क्या है
मेरे ख़्वाबों से छेड़खानी और क्या है

सुबह दफ़्तर, शाम को घर
रोज़मर्रा की परेशानी और क्या है

सारी आरज़ू-ओ-आबरू-ओ-जुस्तजू लूटकर
पूछते हैं वो जानी, और क्या है

मुझको छूकर अक्सर जल जाया करते हैं
राख में अंगारे की निशानी और क्या है

सच देखती है सच बोल नहीं सकती
इक कलम की बेज़ुबानी और क्या है

बे-वक़्त बोलना, बे-वक़्त चुप रहना
ज़िन्दगी की पशीमानी और क्या है

'जौन' से आख़िरी बार मिली वो कहकर
इश्क़ जावेदानी है, और क्या है

Thursday, October 11, 2018

अकेले शेर - 23

बीमार हैं चारासाज़ी के ग़ुलाम हैं
हम फ़क़त अपने माज़ी के ग़ुलाम हैं

हारने वालों ने घुटने नहीं टेके
जीतने वाले बाज़ी के ग़ुलाम हैं

Tuesday, October 9, 2018

जन्मदिन

जन्मदिन, एक और दिन...
पर मैं तो गर्भ में भी ज़िंदा था
क्या उस दिन मेरा जन्मदिन था जब मैं पहली बार भ्रूण बना
या उस दिन जब उसमें आत्मा प्रविष्ट हुई
या फिर उस दिन जब मैंने पहली बार गर्भ में हरकत की

पर जन्मदिन मेरा है या इस आवरण का जिसे हम शरीर कहते हैं
यह तो इसपे निर्भर करता है कि हम स्वयं को किससे इंगित करते हैं

युग के अंत में सृष्टि की पुनरावृत्ति होती है
तो क्या हर युग की शुरुआत में मेरा जन्मदिन है

पर आत्मा तो युगातीत भी है
तो क्या मेरा जन्म रचयिता का भी जन्मदिन है
क्या हम और रचयिता एक ही हैं?

Sunday, October 7, 2018

ग़ज़ल - 80

बू-ए-ज़मीं से बारिश का पयाम गुज़र जाना
जैसे तेरे लबों से मेरा नाम गुज़र जाना

कटती है कुछ इस तरह ख़्वाबों में ज़िंदगी
नींद में हक़ीक़त का अंजाम गुज़र जाना

कुछ ऐसा है मुझपर तेरे ख़यालों का मो'जिज़ा
मौज-ए-मशक़्क़त में भी आराम गुज़र जाना

देखती हैं उदास आँखें दरवाज़े और दरीचे की
तेरा मेरी गलियों से गुमनाम गुज़र जाना

तेरी सोहबतों में दिन ढले रक़ीब का, और मेरा
तेरे तसव्वुर में बैठना और शाम गुज़र जाना

भला इंसान था मारा गया सियासी उलझनों में
दुनिया में ऐसे वाक़िओं का तमाम गुज़र जाना