Friday, June 2, 2017

घर

याद है तुम्हें, हमने एक घर बनाया था
जिसकी चार दीवारों को अपने हाथों से सजाया था

इक दीवार जिसपे चाहत उकेरी थी
इक दीवार जिसपे गुलदान सजाया था
इक दीवार जिसपे ग़ालिब और कीट्स छपे थे
पर इक दीवार जिसको काला रंगवाया था

जब भी हममें से कोई रूठ जाता
तो बिस्तर का सिरा उस काली दीवार की तरफ कर देता

अक्सर यूँ होता कि मैं सिरा चाहत की तरफ घुमाता
अक्सर तुम थक जाती उसे सियाह दीवार की तरफ करते

आकर देखो तो कभी तुम
चारों दीवारें काली रंगवा दी हैं 

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