Thursday, January 12, 2017

ग़ज़ल - 13

ये कैसा हाल बना रखा है
"हमने तेरा शोक मना रखा है"

ये घटाओं में कैसी ख़ामोशी है
"मेरे ग़म ने शोर मचा रखा है"

ये नदियों में ऊफ़ान सा क्यूँ है
"अश्कों ने सैलाब उठा रखा है"

ये फ़िज़ा में कैसी तन्हाई है
"हमने रिश्तों को निभा रखा है"

ये पंछी क्यों रो रहे हैं
"हमने हाल-ए-दिल सुना रखा है"

ये कलियों की इस्मत क्यूँ उजड़ी है
"भँवरों ने कोहराम मचा रखा है"

ज़िन्दगी कैसे गुज़र होगी अब
मौत का सामान तो जा रखा है

अब किसी ग़म की परवाह नहीं
फ़ुर्क़त-ए-ग़म को जो पा रखा है

फैसला तुमको भूल जाने का
हयात-ए-मक़्सद बना रखा है

No comments:

Post a Comment