एक और वर्ष बीतने को है
पत्र कोई शाख से टूटने को है
जीवन की निरंतरता से बोझल होकर
ज़ेहन खुद अपनी आबरू लूटने को है
मंज़िल के पास जा रहे या दूर
ये भांडा अब फूटने को है
उसके पहलू से कुछ यूँ उठे हम
जैसे अश्रू नयन से छूटने को है
ज़िन्दगी कुछ यूँ तुनक-मिज़ाजी सी
जैसे प्रेयसी सजन से रूठने को है
भृकुटि-मध्य संध्या की लाली
जैसे सूरज पर्वतों में डूबने को है
एक ही बीज तो बोया था हमने
कोई और उसकी फ़स्ल लूटने को है
पत्र कोई शाख से टूटने को है
जीवन की निरंतरता से बोझल होकर
ज़ेहन खुद अपनी आबरू लूटने को है
मंज़िल के पास जा रहे या दूर
ये भांडा अब फूटने को है
उसके पहलू से कुछ यूँ उठे हम
जैसे अश्रू नयन से छूटने को है
ज़िन्दगी कुछ यूँ तुनक-मिज़ाजी सी
जैसे प्रेयसी सजन से रूठने को है
भृकुटि-मध्य संध्या की लाली
जैसे सूरज पर्वतों में डूबने को है
एक ही बीज तो बोया था हमने
कोई और उसकी फ़स्ल लूटने को है
बहुत खू़ब।
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