Sunday, December 7, 2014

सब बराबर है

सब बराबर है ।

भोग में वैराग में,
वियोग में या राग में,

दुःख हो, सुख हो इस क्षण,
अगले ही क्षण,
सब बराबर है ।

हास्य में बीत रहा या गहन शान्ति में,
स्पष्ट सब दिख रहा या गहन भ्रान्ति में,
पाप में बीत रहा या पुण्य में,
दूर का हो ध्येय या फिर शून्य में,

गुण-अवगुण, निर्गुण-सर्गुण,
अगले ही क्षण,
सब बराबर है ।

कोई प्रीत के सागर में डुबकी लगाये,
या कोई एकाकीपन के रस में नहाये,
कोई भाव-सागर को पार करे,
कोई मृग-जल को ही पाँव धरे,

सूखे तो सब ही रह जाते,
पराजय तो अंत में सभी पाते,

जय-पराजय, यश-अपयश,
अगले ही क्षण,
सब बराबर है ।

परन्तु कब समझेंगे यह,
के प्रयोजन तो कुछ भी नहीं,

चेष्ठा तो केवल उसी की है -
वह जो हो तो कुछ और नहीं रहता
वह जो न हो तो कुछ नहीं रहता ।

अब भूल जाओ इसे, या याद ही रखो,
अगले ही क्षण,
सब बराबर है । 

Thursday, December 4, 2014

ग़ज़ल - 4

मेरी आँखों में देख कर सँवर लो तुम
मेरे होंठों पे नज़्म सी बिखर लो तुम

है ख़ानाबदोश ये इश्क़-ए-सफर
मेरे घर को अपना घर कर लो तुम

मेरी बे-ख्वाब रातों को अपनी रात
मेरी सेहर को अपनी सेहर कर लो तुम

यूँ जो दिल बहलना हो जाए दुश्वार
मेरा ख़ून-ए-जिगर कर लो तुम !

मैं दौलत-सरा तो नहीं, ना सही
मेरा नसीब अपनी नज़्र कर लो तुम

यूँही कभी-कभी मेरा नाम लेकर
दुनिया से जिरह कर लो तुम

और जब नादामतों पे अपनी हो जाओ मायूस
मेरे काँधे पे अपना सर कर लो तुम 

Saturday, September 20, 2014

आज लहरें खामोश हैं

आज लहरें खामोश हैं ।

कल यूँ उठती थीं मानो, मुझतक पहुँचने की जल्दी थी
कोई पैगाम छुपा था अंतर-गर्भ में, बतलाने की जल्दी थी

कल शोर यूँ बरपाती थीं, मानो बच्चियाँ चहकती हों
चाँद नहीं खींचता इनको, ये खुद ही पाने को लपकती हों

पर आज ये कैसा खालीपन इन्मे, लहरें सूखी-सूखी हैं
रंग-ढंग सब बिगड़ चुका, आवाज़ें रूखी-रूखी है

आज ये तट पर ऐसे आतीं, मानों अश्रु की कुछ बूँदें हों
कोई गहरा सन्नाटा ओढ़े, सागर आँखें मूंदें हो

कल से आज में, कुछ बदल तो गया है
लहरें शांत नहीं हुईं, समुद्र मर गया है । 

Monday, May 26, 2014

ग़ज़ल - 3

खाली पन्ने यादों के, पलट के देखता हूँ 
तेरे बिताये लम्हों कि मरघट को देखता हूँ 

मोहब्बत, अक़ीदत, वफादारी, लाचारी,
मैं मुड़ के बस तेरी नीयत को देखता हूँ 

ये हीर, ये रांझे, महिवालों के किस्से,
इन किस्सों मे बस, गोया, कैफ़ियत को देखता हूँ 

शब-ए-वस्ल-ओ-सेहर-ए-हिज्राँ 
मैं इन के दरम्याँ कि मुद्दत को देखता हूँ