Thursday, December 4, 2014

ग़ज़ल - 4

मेरी आँखों में देख कर सँवर लो तुम
मेरे होंठों पे नज़्म सी बिखर लो तुम

है ख़ानाबदोश ये इश्क़-ए-सफर
मेरे घर को अपना घर कर लो तुम

मेरी बे-ख्वाब रातों को अपनी रात
मेरी सेहर को अपनी सेहर कर लो तुम

यूँ जो दिल बहलना हो जाए दुश्वार
मेरा ख़ून-ए-जिगर कर लो तुम !

मैं दौलत-सरा तो नहीं, ना सही
मेरा नसीब अपनी नज़्र कर लो तुम

यूँही कभी-कभी मेरा नाम लेकर
दुनिया से जिरह कर लो तुम

और जब नादामतों पे अपनी हो जाओ मायूस
मेरे काँधे पे अपना सर कर लो तुम 

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