मैं सोचता हूँ कभी
ये बदन एक साँचा है
जिसमें रहती है, जीवन की नदी
और ये आँखें एक झरोखा है
जिससे आप देख सकते हैं
नदी के बिल्कुल भीतर
माप सकते हैं इस नदी का सफ़र
इसके भीतर हो रही हर एक हलचल
और यदि एकाग्र होकर देखें तो
दिख जाता है प्रतिबिम्ब, स्वयं का
ब्रह्मांड का
उस तत्व का जिससे हम सब बने हैं
तो अब यदि किसी से मिलें
तो आँखों के भीतर, गहरे देखें
स्वयं से बात करते पाएंगे खुद को
ये बदन एक साँचा है
जिसमें रहती है, जीवन की नदी
और ये आँखें एक झरोखा है
जिससे आप देख सकते हैं
नदी के बिल्कुल भीतर
माप सकते हैं इस नदी का सफ़र
इसके भीतर हो रही हर एक हलचल
और यदि एकाग्र होकर देखें तो
दिख जाता है प्रतिबिम्ब, स्वयं का
ब्रह्मांड का
उस तत्व का जिससे हम सब बने हैं
तो अब यदि किसी से मिलें
तो आँखों के भीतर, गहरे देखें
स्वयं से बात करते पाएंगे खुद को
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