बूढ़े शजर पर आओ घर बनाते हैं
पत्ते इकठ्ठे कर कर पर बनाते हैं
अपनी आँखों पे डाल कर तअस्सुब की पट्टी
शफ़क़ रौशनी में अंधेरे का डर बनाते हैं
ज़ेर-ए-शब तीरगी में सैकड़ों जुगनू
अपनी रौशनी जोड़ कर सहर बनाते हैं
अमन के समंदर में ये दहशत-फ़रोश
सफ़ीने डूब जाएँ ऐसी लहर बनाते हैं
पत्ते इकठ्ठे कर कर पर बनाते हैं
अपनी आँखों पे डाल कर तअस्सुब की पट्टी
शफ़क़ रौशनी में अंधेरे का डर बनाते हैं
ज़ेर-ए-शब तीरगी में सैकड़ों जुगनू
अपनी रौशनी जोड़ कर सहर बनाते हैं
अमन के समंदर में ये दहशत-फ़रोश
सफ़ीने डूब जाएँ ऐसी लहर बनाते हैं
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