Sunday, July 30, 2017

ग़ज़ल - 22

तन्हाई में ये ख़याल आता है
क्या पाने से सुकूँ आता है

क्या होने से गुमाँ बढ़ता है
क्या खोने से मलाल आता है

किताबें पढ़ लीं क्या हुआ हासिल
गैरों के ख़्याल से क्या नाता है

कुछ कर गुज़रेंगे इस दुनिया में
पल भर को ही जुनूँ आता है

सच की निगाहों से दुनिया देखी
शीशे में बूढ़ा बाल आता है

कोई इश्क़ ज़रूरी है जीने को
तूफाँ से नदी में उछाल आता है

तुम जीने की वजह लौटा दो
साँस लेना बहरहाल आता है

सच्ची सूरत, झूंठे आँसू
ये हुनर तुम्हे बा-कमाल आता है

सियासी रोटी सेंकनी हो तो
रक्त का ईंधन इस्तेमाल आता है

ख़्वाब-ए-इशरत की ज़द में
इंसाँ घर क्यूँ पामाल आता है

गो खुद को उलझा के दिलासे देना
के दुनिया में तू बड़ा काम आता है

Friday, July 28, 2017

ग़ज़ल - 21

अपनी-अपनी म्यान से शमशीर उघाड़ दो
मैंने नक़ाब उतार दिया तुम भी उतार दो

क़ातिल पहन के आये हैं हमदर्द का चोला
तुम भी मरहम बनो और ख़ंजर को धार दो

तहय्युर में देखते हैं उनका नाला-ए-मज़ालिम
इस जलवा-ए-अदाकारी के लिए कोई पुरस्कार दो

इस सक़ाफ़त में जीना है तो बेड़ियाँ पहन लो
और पैसों के एवज़ में अपनी ज़िन्दगी उधार दो

जो मैं नहीं मक़सूद-ए-मुहब्बत न सही
उसका तो घर बसा उसे चार कहार दो

सब रिश्ते ताक पे रखकर इश्क़ में हो गए कुर्बां
काम बड़ा किया है इन्हें खुद की मज़ार दो

ये दिल है मेरा कभी सौदा किया करे कोई
बे-क़ीमत जानकार न तुम ऐसे नकार दो

देखा जो हमने मुफ़्लिसी-ए-उल्फ़त का ज़माना
हमने तो यही ठाना के हर शख़्स को प्यार दो