Sunday, April 19, 2015

ग़ज़ल - 5

कोई ग़म दे गर तो क्या कीजे
रात-दिन चस्म-ए-तर कीजे

समंदर पार ही रहता है क़ातिल
समंदर पार ही कैसे कीजे

बड़ी सादगी से कह दिया उसने
"आप अब हमें भुला दीजे"

ये तो फ़ितरत-ए-हुस्न है गोया
अब तो आप बस दुआ कीजे

उससे इक जनम का वास्ता ठहरा
अब अगली बार जनम लीजे