Saturday, February 26, 2011

तमन्नाएं

तमन्ना थी के पाना है सूरज को,
घर से ज़रा सवेरे निकला था,
जाने किस राह देर हो गयी,
दुपहरी के सूरज ने हाथ जला दिए |

सोचते थे के क्या है ये सागर,
डुबकी मारने की ही तो दरकार है,
पार ही कर लूँगा, तैराक अच्छा हूँ,
अब तक आँखों से टपकता है खारा पानी |

मिला था एक गुल का सानिध्य,
पर मैं तो ठहरा भँवरा,
एक फूल से मेरी संतुष्टि कहाँ,
अब गुंजन ही बन गया है जीवन - क्रंदन |

Tuesday, February 15, 2011

सौंधा सा प्रेम

सौंधा सा प्रेम,
उमड़ पड़ता है,
निगाहों की छींटाकशी पे |

कभी यकबयक, रेंगता हुआ,
अदृश्य से उठता है,
और बुन देता है रेशमी जाले |

कभी बिलखता भी है,
छोटी-छोटी बातों पर,
और पावन कर जाता है दिलों के मेल |

कुछ निराली बात है,
इन प्रेम-वल्लरियों की,
उर्वर कर जाती हैं पाषण ह्रदय को |

सच, सौगात ही है,
प्रीत-कुसुम का खिलना,
निस्स्पंद जीवन में सुवास का मिलना |