मैं सोचता हूँ कभी
के हम दोनों की परिभाषा
एक स्त्री और एक पुरुष के मिलन की परिभाषा नहीं है
अपितु हमारा साथ होना एक घटना है
जैसे दो बीज मिलकर एक मनुष्य बनते हैं
बीज जो अपनी कोशिकाएं कुछ इस तरह संलग्न कर लेते हैं
जैसे दो अणु एक रसायनिक सम्बंध बनाते हों
हम दोनों एक दूसरे के पूरक हो जाते हैं
जैसे प्रकृति और पुरुष
जैसे ब्रह्म और माया
तुम एक स्त्रैण अभिव्यक्ति
मैं एक पौरुष प्रस्फुटन
तुम मेरे स्त्रित्व की पूरक
मैं तुम्हारे पुरुषत्व का द्योता
हम दोनों अपने अपने अंदर
अर्धनारीश्वर को परिपूर्ण कर लेते हैं
और अंततः एक ही प्राणी रह जाते हैं
के हम दोनों की परिभाषा
एक स्त्री और एक पुरुष के मिलन की परिभाषा नहीं है
अपितु हमारा साथ होना एक घटना है
जैसे दो बीज मिलकर एक मनुष्य बनते हैं
बीज जो अपनी कोशिकाएं कुछ इस तरह संलग्न कर लेते हैं
जैसे दो अणु एक रसायनिक सम्बंध बनाते हों
हम दोनों एक दूसरे के पूरक हो जाते हैं
जैसे प्रकृति और पुरुष
जैसे ब्रह्म और माया
तुम एक स्त्रैण अभिव्यक्ति
मैं एक पौरुष प्रस्फुटन
तुम मेरे स्त्रित्व की पूरक
मैं तुम्हारे पुरुषत्व का द्योता
हम दोनों अपने अपने अंदर
अर्धनारीश्वर को परिपूर्ण कर लेते हैं
और अंततः एक ही प्राणी रह जाते हैं