ज़िन्दगी कभी हमने जी ही नहीं है
यानी शराब कभी पी ही नहीं है
पूनम की रातों में नदी की सतह पर
उस महवश की सूरत दिखी ही नहीं है
ऐ सूरज ये तुझपे है इल्ज़ाम मेरा
चरागों को मिरे आतिश दी ही नहीं है
तन्हाई का मुजरिम हूँ सज़ा है सफ़र की
पर ख़ता ये तो हमने ख़ुद की ही नहीं है
यानी शराब कभी पी ही नहीं है
पूनम की रातों में नदी की सतह पर
उस महवश की सूरत दिखी ही नहीं है
ऐ सूरज ये तुझपे है इल्ज़ाम मेरा
चरागों को मिरे आतिश दी ही नहीं है
तन्हाई का मुजरिम हूँ सज़ा है सफ़र की
पर ख़ता ये तो हमने ख़ुद की ही नहीं है