Saturday, September 20, 2014

आज लहरें खामोश हैं

आज लहरें खामोश हैं ।

कल यूँ उठती थीं मानो, मुझतक पहुँचने की जल्दी थी
कोई पैगाम छुपा था अंतर-गर्भ में, बतलाने की जल्दी थी

कल शोर यूँ बरपाती थीं, मानो बच्चियाँ चहकती हों
चाँद नहीं खींचता इनको, ये खुद ही पाने को लपकती हों

पर आज ये कैसा खालीपन इन्मे, लहरें सूखी-सूखी हैं
रंग-ढंग सब बिगड़ चुका, आवाज़ें रूखी-रूखी है

आज ये तट पर ऐसे आतीं, मानों अश्रु की कुछ बूँदें हों
कोई गहरा सन्नाटा ओढ़े, सागर आँखें मूंदें हो

कल से आज में, कुछ बदल तो गया है
लहरें शांत नहीं हुईं, समुद्र मर गया है ।